Sunday, May 12, 2013




दिल करता है फिरसे पापा की गुड़िया बन जाऊं,

थके हारे जब लौटे पापा, अपनी छोटी - छोटी हथेलियों से उनका माथा सहलाऊं।

कड़कती सर्दियों में पापा की शौल में लिपटे हुए,
उनकी गोद में ही सो जाऊं।

माँ जब डांटे किसी बात पर ,
तो पापा के पास अर्ज़ी ले जाऊं।

पापा के साथ नुक्कड़ की उस दूकान पे जाकर,
मनमानी कर खूब सारी चॉकलेट ले आऊं।

बहुत हुआ ये खेल बडों का,

दिल करता है बस अब पापा की गुड़िया बन, उस चौखट फिर लौट जाऊं।

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