हर वक़्त लगता है की कुछ कीमती सा खो गया गया है ,
ढूँढने निकलती हूँ जब , तो क्या खोया मैंने समझ नहीं आता है
लगता है जैसे वो किताब जो पढ़नी शुरू की थी मैंने , वो अब भी अधूरी है ,
पर पन्ने छानती हूँ जब तो वो खोया हुआ जुमला कहीं मिल नहीं पता है
लगता है जैसे अरसों हुए घर लौटे ,
घर की तरफ निकलती हूँ जब तो लौट जाने का रास्ता नज़र नहीं आता है
कभी हँसते - हँसते एक आंसू पलकों पर उतर आता है,
फिरसे मुस्कुराने की कोशिश करती हूँ जब , तो वो हँसता सा लम्हा याद नहीं आता है।
कभी हँसते - हँसते एक आंसू पलकों पर उतर आता है,
फिरसे मुस्कुराने की कोशिश करती हूँ जब , तो वो हँसता सा लम्हा याद नहीं आता है।
No comments:
Post a Comment
your appreciations and feedback means a lot.... do let me know if you like it and even if you don't :)