बहुत दिनों बाद एक फिल्म देखी जो बहुत समय तक साथ रहेगी। जी नही इस फिल्म में कोई उपदेश नही है। सही और गलत की कोई लड़ाई नहीं। ना कोई विलेन है और नाही कोई हीरो जो एक हाथ से दस लोगो को पछाड़ दे।
ये कहानी है मेरी और आपकी। कहानी है जीवन की, जहाँ बड़ी ही सरलता से इस सच्चाई को दर्शाया गया है की जीवन का सबसे बड़ा सच ये है की वो चलते जाता है। कुछ भी हमेशा के लिए नहीं रहता न दुःख ना ख़ुशी ना ही कोई मुसीबत। मेरे और आपके सामान्य से जीवन की ये कहानी कहीं न कहीं हमें ये उम्मीद भी दे जाती है की जीवन का पइया चलता जाता है और हर समस्या का हल निकलता है। कोशिश करते जाइए बस।
इस फिल्म के हर किरदार से आप मिले हैं कभी न कभी। देवी शायद आपकी कोई दोस्त रही होगी , या शायद आपके स्कूल या कॉलेज की वो लड़की आप जिससे ईर्ष्या करते हो, की इतनी हिम्मत आती कहाँ से है और हो सकता है आपने उसे कभी बदचलन या कुछ ज़्यादा ही फॉरवर्ड होने का लेबल भी दिया हो। देवी के पिता में आपको अपने पिताजी की भी झलक दिखेगी। मर्ज़ी चाहे कितनी भी बड़ी गलती करिए पापा की नाराज़गी कुछ पल की ही मेहमान होती है और देवी के घर छोड़ने पे आपको अपने घर छोड़के हॉस्टल जाने वाला वो दिन ज़रूर याद आएगा। शालू और दीपक के प्यार में आपको अपना पहला प्यार और दीपक के दोस्तों में अपने दोस्तों की याद ज़रूर आएगी। दुर्गा पूजा के पंडाल में छुप छुप के आँखों ही आँखों में प्रेम जताने का सीन आपके दिल में वो लड़कपन की गुदगुदी फिर पैदा करेगी और ये तसल्ली भी मिलेगी की फेसबुक के दौरान का प्रेम हो या कुछ सालों पहले के चिट्ठियों वाला आज भी पहले प्रेम की मासूमियत और गुदगुदाहट एक सी ही है।
फिल्म का बोनस : दुष्यंत की कविता पर बना ये गाना " तू किसी रेल सी गुज़रती है, मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ " आपको राहत देगा की "चार बोतल वोडका " के इस दौर में भी दुष्यंत को याद करने वाले लोग हैं। और अगर हिंदी साहित्य और कविताओं से सरोकार ना भी रखतें हो तो "अकबर अलाह्बादी " "निदा फ़ाज़ली " का उल्लेख आपको उनके बारे में और जानने के लिए थोड़ा उकसायेगा ज़रूर। अपनी ये उत्सुकता शांत कीजियेगा, पछताऐंगे नहीं।
अगर आपने मसान अभी तक नही देखी तो ज़रूर देखिये। बहुत मुश्किल से इस दर्जे की फिल्में बनती है आजकल। मिस मत कीजियेगा।