तुम शायद मेरे लिए चलती साँसों के जैसे हो गए हो,
साथ रहते हो पर तुम्हारे साथ का एहसास नहीं होता,
जब तक थम जाने की नौबत न आये,
तब तक तुम्हारी ज़रुरत का आभास नहीं होता !
कभी बातें तो नहीं की साँसों से,
पर मेरे साथ वो भी, कभी धीमी होती, कभी चढ़ती जाती है,
पर पता भी नहीं चलता।
तुम वैसे ही रोते हो, हँसते हो साथ मेरे ,पर तुम्हारे हंसने-रोने का ख्याल नहीं आता !
बात ये नहीं की तुम्हारी ऐहमियत की समझ नहीं मुझे
पर साँसे जिस्म का हिस्सा ही तो है,
वैसे ही तुम्हारे खुद से अलग होने का एहसास नहीं होता।।