बस एक लम्हे का झगड़ा था,
दरो दीवार पर ऐसे झनाके से गिरी आवाज़,
जैसे कांच गिरता हो,
नज़र में, बात में, लहजे में,
सोच और साज़ के अंदर।
लहू होना था इक रिश्ते का,
सो वो हो गया एक दिन।
उसी आवाज़ के टुकड़े उठा कर
उस शब किसी ने काट ली नब्ज़े,
ना आवाज़ की कुछ भी,
कहीं कोई जाग ना जाए।
बस एक लम्हें का झगड़ा था।
-गुलज़ार
दरो दीवार पर ऐसे झनाके से गिरी आवाज़,
जैसे कांच गिरता हो,
नज़र में, बात में, लहजे में,
सोच और साज़ के अंदर।
लहू होना था इक रिश्ते का,
सो वो हो गया एक दिन।
उसी आवाज़ के टुकड़े उठा कर
उस शब किसी ने काट ली नब्ज़े,
ना आवाज़ की कुछ भी,
कहीं कोई जाग ना जाए।
बस एक लम्हें का झगड़ा था।
-गुलज़ार
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